सिर्फ 'सख्ती' से नहीं, 'सोच' बदलने से बचेगी जान: हेलमेट कानून की नई चुनौती!


 बेतवा भूमि न्यूज़ भोपाल 
नियम तो बना, पर सड़कों पर अब भी 70% लापरवाही; पीछे बैठने वाले से पालन की उम्मीद कैसे?
नई दिल्ली/भोपाल: दोपहिया वाहन पर पीछे बैठने वाले (पिलियन राइडर) के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य किए जाने के साथ ही, देश की सड़कों पर नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। हाल ही में कई राज्यों, विशेषकर मध्य प्रदेश में, इस नियम को 6 नवंबर से सख्ती से लागू करने का अभियान शुरू किया गया है, जिसके तहत 4 साल से अधिक उम्र के किसी भी यात्री के हेलमेट न पहनने पर चालान काटा जाएगा।
यह नियम मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 129 के तहत पहले से मौजूद था, लेकिन अब इसे कड़ाई से लागू किया जा रहा है।
🚦 चालान नहीं, जीवन बचाने की जिम्मेदारी
इस नई सख्ती के बावजूद, जमीनी हकीकत निराशाजनक है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, आज भी सड़कों पर चलने वाले करीब 70 प्रतिशत चालक खुद हेलमेट नहीं लगाते। ऐसे में, यह बड़ा सवाल है कि जब चालक ही सुरक्षा के प्रति इतने लापरवाह हैं, तो पीछे बैठी सवारी से इस नियम के पूर्ण पालन की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
 * लापरवाही का मंजर: चौराहों पर अक्सर बिना हेलमेट तेज रफ्तार में भागते युवक और ट्रैफिक पुलिस की अनदेखी अब आम हो चुकी है।
 * मौतों का आंकड़ा: हादसों में सिर की चोटें सबसे ज्यादा मौत का कारण बनती हैं, जो हेलमेट के महत्व को बताती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एक सही हेलमेट मृत्यु के जोखिम को 6 गुना और मस्तिष्क की चोट के जोखिम को 74% तक कम कर देता है।
 जागरूकता ही असली कुंजी
विशेषज्ञों का मानना है कि हेलमेट कानून को केवल चालान वसूली का जरिया नहीं बनना चाहिए। मोटर व्हीकल एक्ट में जुर्माने की बढ़ोतरी (जैसे ₹1000 का चालान) से अस्थायी डर पैदा हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक बदलाव के लिए लोगों की सोच को बदलना आवश्यक है।
प्रशासन को सख्ती के साथ-साथ जन-जागरूकता अभियान पर भी जोर देना होगा। सुरक्षा के नियमों का पालन करने की जिम्मेदारी सिर्फ पुलिस की नहीं, बल्कि हर नागरिक की है। जब तक लोग सुरक्षा को अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं मानेंगे, तब तक कोई भी नियम पूरी तरह असरदार नहीं हो पाएगा।